विरासत (पार्ट -1 )
विरासत (पार्ट -1 )
बस
अड्डे पर उस दिन कुछ ज्यादा ही भीड़ थी ! बुधवार जो था ! हफ्ते के उन दो
दिनों में से एक जब डॉक्टर बनर्जी पुराने शहर में अपनी क्लीनिक में बैठते
थे ! सोमवार और बुधवार को दूर -दूर से मरीज आते थे और सुबह से डॉक्टर साहेब
की क्लीनिक में लाइन लग जाती थी कई पश्तो से आ रहे थे
डॉक्टर बनर्जी के पिता सीनियर डॉक्टर बनर्जी भी शहर के मशहूर डॉक्टर थे !
डॉक्टर बनर्जी दिल के मरीज थे ! पर छुपाकर सारी चीजे खा लेते थे, जो उन्हें
मना थी ! परिवार जैसा नाता रखते थे मरीजो से ! पूछते थे, "क्या हुआ इतनी
जल्दी क्यों हैं ब्याहने की ?"
पचास साल से शहर और दूर-दूर दे कई और शहरो के लोगो का इलाज किया था !
जानलेवा से जानलेवा, लाइलाज से लाइलाज मर्ज ठीक होते थे यहाँ ! बनर्जी
क्लीनिक में आना हजारो परिवारो के लिए था, जैसे काली माता के मंदिर में
जाकर प्रसाद चढ़ाना !
फिर सीनियर डॉक्टर बनर्जी एक दिन जाड़े की सुबह गुजर गए ! लेकिन अपना सारा
ज्ञान तब से अपने बेटे डॉक्टर प्रमोद बनर्जी के हाथो सौंप गए थे ! कहते थे,
"डॉक्टर होने के लिए सिर्फ ऍम बी बी एस की फ्रेम की हुई कागज की डिग्री की
जरूरत नहीं होती !अच्छा डॉक्टर होने के लिए अच्छा इन्सान होना जरूरी है
और मेरा बेटा मुझसे बहुत बेहतर इंसान है ! चाहता तो विलायत जा सकता था !"
खैर, मुल्क छोड़कर जाने या न जाने से किसी इन्सान की भलाई या बुराई नहीं
दिखती है ! लेकिन भलाई इसमे थी कि बाप-बेटा दोनों गरीबो का इलाज मुफ्त में
करते थे और बाकियो का भी बड़ी मुनासिब फीस लेकर !
बड़े
डॉक्टर बनर्जी कई साल अपने बेटे के साथ-साथ क्लीनिक में बैठे थे ! उनका
मानना कि भगवान ने उन्हें डॉक्टर बनाकर उन पर बड़ी कृपा की थी ! जैसे भगवान
ने अपना काम अपने भरोसे के कुछ लोगो को सौंप दिया था कि जाओ, मेरे पास बहुत
काम है आजकल ! तुम लोग जाकर मेरा हाथ बंटाओ
अपने बेटे से कहते, "काली मंदिर जाने और मछली मोहल्ले की इस गली में आने
कोई फर्क नहीं होना चाहिए दोनों जगह हर आने वाले की तकलीफ दूर होनी चाहिए !
आखिर डॉक्टरी भगवान का दिया आर्डर हैं, व्यापार नहीं है
हर रोज़ चहकते वाले डॉक्टर बनर्जी आज कुछ ज्यादा ही चहक रहे थे ! अरे आप
अटकलें मत लगाये ! डॉक्टर बाबू 65 की उम्र में कही दिल नहीं लगा बैठे थे !
शकुंतला जी ने रविंद्रा संगीत और टैगोर कि पोएट्री शो-ऑफ़ कर-करके पचास साल
पहले स्कूल डेज़ में ही उनका दिल जीत लिया था
चहक इसलिए रहे थे कि उनका बेटा आज घर वापस आ रहा था, डाक्टरी पड़कर ! दो-दो
डॉक्टर बनर्जी तो इस परिवार में पहले ही पैदा हो चुके थे ! अब तीसरे पधार
रहे थे !
डॉक्टर बनर्जी के बेटा उनकी आँखों का तारा था ! उनका गरूर ! बल्कि सच पूछिए
तो एक डिस्पिलन पसंद पिता कि एकमात्र कमजोरी, जिसके लिए अक्सर उन्होंने
अपने ही बनाए कानून तोड़े थे
डीएम् साहब के बंगले और आईजी साहब की कोठी जितना मशहूर पता था, डॉक्टर
बनर्जी के क्लीनिक का !
क्लीनिक
खचाखच भरा था ! कुर्सियों , बेंचो, यहाँ तक कि सामने चबूतरे पर लोग बैठे
थे ! डॉक्टर बनर्जी का असिस्टेंट मुन्ना मरीजो का नाम पुकार रहा था और इस
बीच डॉक्टर साहब ने देखा कि कमीज-पैंट, कुरता, साड़ी सलवार-कमीज, पहने लोगो
कि भीड़ में दो आदमी सूट और टाई पहने भी बैठे थे ! उन्होंने वही से चिल्लाकर
कहा, "पर्सनल मैटर क्लीनिक में नहीं ! कल आइये घर पर! ठीक दस बजे
सूट-टाई वाले चले गए ! मरीजो की लाइन को ख़त्म होते-होते 3 घंटे लगे । फिर
डॉक्टर साब अपनी पुरानी गाड़ी; में बैठकर चल दिए रेलवे स्टेशन, अपने बेटे
अनिर्बान को रिसीव करने
ट्रेन एक घंटे लेट थी ! डॉक्टर सब प्लॅटफॉर्म पर टहलते रहे, फिर बुक शॉप से
दो अखबार खरीद लिए, काफी खरीदी और बेंच पर बैठकर पढ़ने लगे
सामने एक बड़े से विज्ञापन पर नजर पड़ी जो मुस्कराने लगे! जब तक काफ़ी ख़तम
हुई, ट्रेन आ चुकी थी ! और अनिर्बान स्टेशन से निकलने ही वाला था कि किसी
चुलबुले देवता की तरह बेटे के सामने डॉक्टर सब प्रकट हो गए बोले,
"सरप्राइज"
अनिर्बान बड़ा खुश हुआ और पापा को गले से लगा लिए, डॉक्टर बनर्जी साथ-साथ
प्लॅटफॉर्म से निकले, गाड़ी में बैठे ! डॉक्टर बनर्जी ने गाड़ी स्टार्ट कि और
अनिर्बान ने उनसे अख़बार ले लिया! ये वही विज्ञापन था जिसे देखकर उसके पिता
मुस्कुराए थे
शहर में पहला प्राइवेट हॉस्पिटल खुलने जा रहा था ! अनिर्बान बोला "शहर भी
एडवांस हो गया है
डॉक्टर बनर्जी बोले, "कितने भी प्राइवेट हॉस्पिटल खुल जाये, अब मेरा बेटा आ
गया है ! बेस्ट डॉक्टर इन शहर अब मै रिटायर हो जाऊंगा और तुम बनर्जी
क्लीनिक के डॉक्टर बनर्जी बन जाओगे
"अरे ! डॉक्टर बनर्जी का बेटा बाहर से डॉक्टरी पढ़कर आया है ! जरुर डॉक्टर
साहेब जैसा अच्छा डॉक्टर बनेगा !
अच्छा डॉक्टर, यानि अच्छा इन्सान
दोस्तों,मुझे अक्सर बड़ी तकलीफ होती है कि डॉक्टरी पेशा किस धरातल में जा
रहा है ! बड़े शहरो में तो डॉक्टर और करोड़पति जैसे एक-दूसरे के पर्याय बन गए
है ! दो साल पहले मेरे पिताजी का आँपरेशन हुआ था, तो हस्पताल में काफ़ी
वक़्त गुजरता था! वहा देखा कि कैसे अपनी जमीन, अपनी बीवियों के गहने बेचकर
किसान सौ किलोमीटर दूर हस्पतालो में जाते है ,अपने करीबियों की जान बचाने !
ये वही ग़रीब थे, जिनके नाम पर सरकार ने हस्पताल के लिए करोड़ो की जमीन
कौड़ियो के मौल दी थी ! दिल का आँपरेशन तो करते है, पर हस्पतालो के पास दिल
क्यों नहीं होते?
खैर
डॉक्टर बनर्जी की कहानी की और आगे बढ़ते है ! उन्होंने डॉक्टर होने को
हमेशा समाज की भलाई का काम माना था ! इसलिए इसलिए उनका क्लीनिक पैसे छापने
की मशीन नहीं, अच्छी सेहत कि फैक्टरी बन गई थी यश और दुआए तो खूब कमाई थी,
हाँ पैसा ज्यादा नहीं कमा पाये थे डॉक्टर बनर्जी
उनके पिता ने उनके लिए बड़ा पुश्तैनी मकान छोड़ा था, जो परदादाओं के ज़माने का
था ! मकान भी अब बुजुर्ग हो चला था ! आकिर्टेक्ट कहते थे, "उसका एक हिस्सा
अब इतना कमजोर हो गया था कि रहने के लिए बहुत ख़तरनाक था !
डॉक्टर बनर्जी ने बैंक से लोन लेकर उस हिस्से को तोड़कर दोबारा बनवा लिया था
! दस लाख रूपए लगे थे ! शहर के मशहूर डॉक्टर बनर्जी कि ज़िंदगी का अनकहा
सच, जो दुआएं देते उनके मरीज़ नहीं जानते थे, वो ये था कि वो दस लाख का लोन
डॉक्टर साहेब चुक नहीं पाए थे !
पिछले दिन क्लिनिक में बैठे सूट और टाई पहने दो सज्जन उस बैंक से ही आए थे !
अगली सुबह दो दोनों डॉक्टर साहेब के कहे अनुसार दस बजे घर पहुँच गए ! बेटे
अनिर्बान ने बैंक के अफसरो को बिठाया चाय पानी पिलाया, फिर पूछा "पेशेंट
है आप ? पापा ने टाइम दिया है क्या ? क्योकि वो घर पर सिर्फ इमर्जेंसी केस
देखते है
दो अफसरो में से एक ने गले साफ़ किया और बोला, "नहीं सर, हैम बैंक से है !
बस ये बताने आए थे कि अगर अठारह दिन में लोन नहीं भरा, तो हमें ये घर बेचना
होगा !
डॉक्टर बनर्जी देखने से तो मस्तमौला लगते थे, लेकिन एक टाइम बम थे, जो उनके
अंदर लगातार चल रहा था ! मुस्कराहट के पीछे इस बुजुर्ग डॉक्टर की जिंदगी
का सबसे बड़ा डर छुपा था ! बैंक को दस लाख न दे पाने के कारण पीढ़ियो पुराना
वो पुश्तैनी घर बिकने पर आ गया था !
बैंक के अफ़सरों को कुछ दिनों में पैसे देने का वादा करके भेज तो दिया,
लेकिन दस लाख रूपए
एक ईमानदार डॉक्टर,जो मरीज़ो से कम फ़ीस लेता था, इनकम टैक्स कि चोरी ना करके
हर पेशंट को रसीद देता था और जिसने डॉक्टरी को सेवा का जरिया माना था, ना
कि व्यापार, वो डॉक्टर आज धर्मसंकट में था
अगली सुबह डॉक्टर बनर्जी अपनी छड़ी लेकर रोज़ की तरह मॉर्निग वॉक पर निकले !
हर दस मीटर पर कोई जाननेवाला मिल जाता था ! सड़क पर सामने कुछ होर्डिंग्स
लगे थे ! शहर में अपार्टमेंट कल्चर जो शुरू हो रहा था ! डॉक्टर बनर्जी के
कुछ दोस्तों ने सलाह तो दी थी, लोन चुका दे और एक छोटे से अपार्टमेंट में
शिफ्ट हो जाये
डॉक्टर बनर्जी ने सड़क पर लिखे कुछ प्रॉपर्टी डीलर के नंबर अपनी छोटो सी
डायरी में उतार लिए ! लेकिन घर के सामने पहुंचे तो रुक गए ! सामने उनका
खूबसूरत घर वैसे ही खड़ा था, खामोश, टकटकी लगाए उन्हें देखता, जैसे कभी
डॉक्टर बनर्जी के पिता खड़े होते थे , उनका स्कूल बस से इंतजार करते हुए !
इस लॉन पर पहली बार उन्होंने अपने पापा से सीपिन करना सिखा था, यही इक्कीस
साल की लड़की आई थी, जिसने टैगोर की लिखी एक कविता बांग्ला में सुनाई थी और
प्रमोद बनर्जी का दिल जीत लिया था ! इसी घर में लाल रंग कि शॉल में लिपटे
अपनी हथेली से बस जरा से बड़े अपने बेटे को, अनिर्बान को हस्पताल से लेकर आए
थे !
वो अपने घर के अंदर
पहुचे ! पत्नी शकुंतला ने अपने सारे ज़ेवर बिस्तर पर निकाल कर रख दिये थे और
बोली " इन्हे बेच दो ! शायद ये घर बच जाये ! बस ये चूड़िया छोड़ देना !
सुहाग की निशानी है !"
डॉक्टर
बनर्जी की आँखों में आंसू आ गए ! बोले, "शंकुतला अब मेरा बेटा आ गया है !
अब में अकेला नहीं हूँ ! चाहे जो भी हो जाये, इस घर को मै बिकने नहीं दूंगा
! मेरे बेटे के ही जितना प्यारा है मुझे ये घर ! में जानता हूँ, मेरा बेटा
इस घर को बचायेगा !"
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें