मेरी कहानी मेरी जुबानी पार्ट -3

मेरी कहानी मेरी जुबानी  पार्ट -3

अभी हल्का हल्का दिन का उजाला ख़त्म हो रहा था और रात का अँधेरा अपने पांव पसारने जा रहा था।  रोज की तरह  बिजली चली गयी, तो अँधेरा अधिक हो गया, बस इसी अँधेरे का इंतजार हमें होता था क्योकि वही  समय होता खेलने। तो हम शुरू हो गए।  में एक कोने में जाकर अपनी आँखों पर हाथ रख कर एक से दस तक गिनती गिनने लगा और इसी बीच मेरे सभी दोस्त के साथ राजू भी छुप गया । गिनती पूरी होने के बाद में सब को ढूंढने लगा। एक -एक करके में ठप्पा बोलकर सबको आउट करने लगा तो अचानक पीछे से आकर किसी ने जैसे ही मुझे ठप्पा करने के लिए मेरी पीठ पर छूने के लिए हाथ आगे बढ़ाया और मे उसी वक़्त आहट सुन कर पीछे घुमा तो मेरे सर से उसका सर टकरा गया और मुझे चक्कर आने लगे।  मेरी टक्कर किस से हुई अँधेरे में मुझे भी नहीं पता चला, जैसे ही सर में चक्कर आने पर में नीचे झुक कर बैठा, तो मेरे दोस्त यह सोच कर भाग खड़े हुए कि अब मुसीबत आई, अब तो मेरी माँ चिल्लाते हुई वह आएगी। हुआ भी ठीक वैसा भी। मेरी माँ को जैसे ही शोरगुल में यह सुनाई पड़ा कि मुझे चोट लग गयी है, दूर से ही चिल्लाते हुये आई और पूछने लगी "किन्ने मारया है तैन्नू " अब मुझे कुछ पता हो तो बताऊ मै तो चुपचाप बैठा हैरानी मै ही था कि फिर बिना मेरे जवाब का इंतजार किये बोली " ओ तैन्नू राजू ने मारया है ना " मैंने भी चुपचाप बिना सोचे समझे हाँ में सर हिला दिया।  बस मेरे सर हिलाने की देर थी और मेरे माँ को चिल्लाते हुए उसे और उसके बेटे को कोसने की शुरुआत।  "ओ की खा के ऐनु पैदा कित्ता ई जडो वेखो मेरे मुन्डे दे पिच्छे पया रैन्दा ऐ ? आँखा कोई नई हैगिया ? ऐनो अंदर छुपा के रख, ऐवे सब ने नाल लड्दा रवेंगा तो कोई न  कोई ऐनु कुट देगा, फिर खगरा पैन के घुमडी रयेगी, होर पुछदि रहेंगी किन्ने मेरे मुन्डे नू कूटया" मै चुपचाप खड़ा देखता रहा।

वैसे मेरी माँ का स्व्भाव शुरू से ही काफी सख्त था और उनका क्रोध  बहुत तेजी से सातवे आसमान पर पहुँच जाता था किसी भी बात को समझे बिना अपनी समझ के अनुसार एक सोच उनके दिमाग में होती और उसी सोच को, सोच -सोच कर अपने आप को क्रोध की अग्नि में जलती।  जबकि मेरे डैड का स्व्भाव बिलकुल उसके उलट था। वो बहुत ही ठन्डे तरीके से सबसे बात करते, कोई अगर चुभने या उकसाने वाली बात कह भी जाता तो चुपचाप सुन लेते थे, पर आँखे सब कुछ कह देती है ना ! शायद यह सोच कर चुप रह जाये करते थे कि आज नहीं तो कल अकल आ जायेगी पर उकसाने वाले व्यक्ति को तो अपने ज्ञान पर  गर्व होता है इसलिए कैसे उम्मीद कर सकते है ?  यह तो मेरे डैड का नजरिया था !

मुझे याद है  उन दिनों की मेरी उम्र लगभग पांच साल थी और सफारी सूट बच्चों का पहनाने का माँ बाप को शौक था ! दूकान  के पीछे घर था बीच में एक दरवाजा था जो कि  घर का कमरा और दूकान को अंदर से जोड़ता था और जैसे की मेरा स्व्भाव था कमरे से दुकान आते - जाते रस्ते मे जो कुछ दिखा चुपचाप बोरी से कुछ हाथ की मुठ्ठी में भरा और कुछ कमीज और पैंट कि जेब में भरा और चल दिए दोस्तो पैर रोब  झाड़ने अब चाहे वह काजू बादाम हो किशमिश हो या कुछ और ! एक दिन मै जब कमर से दूकान की और जा रहा था और सफारी सूट पहना था अचानक मेरी नजर गई एक मोटी बोरी पर  कि ठसाठस भरी थी सफ़ेद भुरभरे  नमक  से देखने में बहुत बढ़िया चमकीला लग रहा था , जैसे कि  आदत थी मेरी चलते - चलते इधर उधर देखने कि  शायद आज कुछ बढ़िया खाने को मील जाये ! जब नमक को देखा कि  यह तो देखने मे बढ़िया लग रहा है तो मेरा हाथ अपने आप छूने  को ललायित हुआ और एक बार चख लेने का सोचा ! जब चखा तो यह क्या ये तो मेरी होठो और जीभ पर  बड़ा स्वादिष्ट लगा जीभ और दांतो को कष्ट नहीं देना पड़ा अपने आप ही घुल गया , अब तो मै लग चूका था  अपने उस सफारी सूट के  ऊपर की चारो जेब और पैंट की दोनों जैबो मे  ठसाठस भरने और अपने  दोस्तों पर रोब  झाड़ने !



  

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