महत्वहीन




चीन में मौतसू नाम के एक विचारक हुए । उनके पास अनेक लोग मार्गदर्शन के लिए आया करते थे । किसी गूढ़ बात को समझने का तरीका इतना सरल था कि लोग आसानी से मर्म समझ जाते थे। एक बार त्सुचि नाम का एक व्यक्ति उनके पास आया वह कुछ ज्यादा ही जिज्ञासु लग रहा था उसने मोत्सू से कहा "आप जानी है, शास्त्रों की गहरी बातें भी बड़ी सरलता से उदाहरण देकर समझा देते हैं.... मेरे मन में भी एक जिज्ञासा पल रही है और मुझे विश्वास है कि आप ऐसे हैं जो उसे शांत कर सकते हैं, अगर अनुमति हो तो मैं अपनी जिज्ञासा आपके समक्ष रखूं "

मौतसू ने कहा " अच्छा पूछो क्या जानना चाहते हो"। त्सुचि ने पूछा "लोग कहते हैं कि अधिक बोलना अच्छी बात नहीं है। कृपया विस्तार से इस कथन की सच्चाई को समझाएं," मोत्सू ने कहा... " देखो बरसात के मौसम में मेंढक तालाब में टर -टर करते ही रहते हैं और इसी प्रकार हर मौसम में मच्छर या मक्खी भी भिनभिनाते रहते हैं, .... तो आप खुद सोचो कि इन सब के टर टर और भिनभिनाने पर कौन उस पर ध्यान देता है., उसका क्या महत्व है ? कोई नहीं। .... " किंतु मुर्गा सुबह -सुबह निश्चित समय पर बांग लगाता है और वह दिन रात चिल्लाता नहीं रहता है। लोग उसकी आवाज सुनते हैं और ध्यान देते हैं आवाज सुनते ही कह उठते हैं मुर्गा बांग दे रहा है, ... उठो सवेरा हो गया है। ... अब तो समझ चुके होंगे कि हमें मितभाषी होना और मृदुभाषी क्यों होना चाहिए , क्योकि यह मनुष्य के लिए सम्मान की बात है । व्यर्थ ही कुछ भी समय -असमय बड़बड़ाते रहना मनुष्य को शोभा नहीं देता। अधिक बोलने वाले की बात महत्वहीन बन जाती है, और कोई उसे गंभीरता से नहीं लेता।" यह सुन कर त्सुचि नतमस्तक हो गया उसे अपने सवाल का जवाब मिल चुका था ।

यह कहानी हमारे मित्र अश्विन के द्वारा भेजी गई।

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