मेरी कहानी मेरी जुबानी पार्ट - 4
मेरी कहानी मेरी जुबानी पार्ट - 4
और मैं चल पड़ा अपने दोस्तों मिलने के लिए, मस्त मौला हाथी जैसी मेरी चाल जिसे आसपास देखने की जरूरत ही नहीं
अपने आप में बेफिक्र हो चलता चला गया और पहुँच गया अपने दोस्तों की टोली के बीच। जैसे ही मेरे टोली ने मुझे देखा वैसे
ही सभी के होठों पर मुस्कान आ गई। पिंटू चहकर ने मुझसे पुछा " ओ काके अज कि लैंया है " (आज क्या लाये हो मेरे लिए) ?
मैंने मुस्कुरा कर अपनी सफारी पैंट की दाई और की पॉकेट में हाथ डालकर मुट्ठी भर के उसकी आँखों के सामने मुठ्ठी फैला दी।
मेरे चेहरे पर गर्व से भरी मुस्कान थी जैसे कोई बड़ा तीर मार लिए हो। पिंटू ने मेरी हथेली पर रखें नमक को देखा तो
आश्चर्यजनक रूप से और थोड़े रूखेपन से कहा " ओए ऐ ते नमक है " उसे तो उम्मीद थी कुछ अच्छा खाने की लेकिन नमक
को देखकर मेरी मूरखता और अपने आभागेपन और उसके खाने के लालच से उसकी आवाज में रूखापन आ गया था।
लेकिन मैं तो अपनी ही गाये जा रहा था आगे मैंने कहा " ऐ ना मेरे भापाजी (दादाजी ) ने मंगवाया है स्पेशल मेरे वास्ते
अफगानिस्तान तों मंगवाया सी " ... " मैं ऊना दा लाडला हैंगा ना " यह सुनकर मेरे दोस्त भी लालायित हो गए एक बार उसे चखने के लिए पिंटू ने अपना हाथ बढ़ा कर अपनी ऊँगली से नमक को छूकर अपनी जीभ की ओर बढ़ावा और जैसे ही जीभ पर रखा तो वह अपने मीठेपन का स्वाद देते हुऐ वह घुल गया और अचानक बोल उठा " ओए नमक नहीं ऐ ते, ऐ ना चीनी दा बूरा ऐ। तेनु नहीं पता है " यह सुनकर मैं इतना तो समझ चुका था कि यह सब मुझे मूर्ख समझ रहे हैं और मैं मूर्ख और बेवकूफ तो कतई नहीं बनना चाहता था और रोब अपने हाथ झाड़कर और उन पर खिसियाई हँसते हुऐ कहा " ओ मंनो तो पैल्ले पता सी ( मुझे पहले से ही पता था) पर मैं ते ट्वादी अक्कल वेख रया सी कि त्वन्नु किना पता है
होर ऐ देखना चांदा सी कि त्वन्नु वी कुछ पता है के नई " (मै यह देखना चाहता था की तुम्हे भी मालूम हैं या नहीं ) . यह
कहकर मैं चुपचाप वहा से निकल गया।
लेखक - विजय आनंद
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